माँ को कोई और काम न मिला
तो उसने खदान के लिए गुटके बनाने का काम ले लिया
ऐसे गुटके जिनके भीतर मिट्टी थी नर्म मुलायम जो
डिटोनेटर (बारूद) तक को सहेजती ताकि तोड़े जा सकें कोयले के पहाड़
माँ ने मुझे सिखाया गैंती से मिट्टी तोड़ना ऐसी जिसमें मुलायम
पत्थर और कंकड़ होते, जिन्हें मैं चुन कर अलग करता
और वे जड़ें जो धरती से, मिट्टी में बिंधी निकलती
मैं जतन से अलग कर मिट्टी को पानी से भिगोता
पाँव से खूदता और गड़ता हुआ एक बारीक-सा पत्थर भी अलग करता कि
माँ उससे गुटके बनाती और उससे रोटी भी बेल कर दिखाती
वे रोटियों की शक्ल में बिल्कुल रोटियाँ लगतीं
लेकिन न उन्हें सेंका जा सकता था, न खा सकते थे
हमने रोटी की मिट्टियाँ बनती देखीं
माँ की तरह मैं उसे आटे सा कोमल बनाता
हमने एक दिन में गुटकों से कभी दस आने तो कभी-कभी बारह आने कमाए
जिनसे नहीं बन सकती थीं परिवार के लिए 12 रोटियाँ
माँ ने कम आटा होने पर उनके आकारों को दूसरी,
तीसरी तरह से बनाया पतले से पतला करके
वे उतनी ही थीं तत्व में किंतु संख्या में दुगनी-तिगनी
और ताज्जुब सिर्फ संख्या की गणित से हमने
भूख को परास्त किया और रोज़ डकार के साथ सोए
वैसी नींद फिर आज तक नहीं आई जीवन में